शब्दों में कमाल की ऊर्जा होती है
हमारे मुँह से बोले हुए शब्द हमारे व्यक्तित्व के बारे में बताते हैं। आपने अकसर कुछ लोगों को क्रोधित होते हुए देखा होगा। क्रोध के आवेश में वे लोग, ना जाने क्या-क्या बोल जाते हैं, और वो, जिस व्यक्ति पर क्रोधित हो रहे होते हैं, (चाहे वो उनके घर में, उन्हीं के ऊपर आश्रित कोई व्यक्ति हो, या फिर उनका अधीनस्थ कर्मचारी हो), वे सभी लोग जिनके लिए ऐसे शब्द बोले गये हैं, उन कटु शब्दों को सदैव याद रखते हैं। दूसरी ओर, कुछ लोग काफी कम बोलते हैं और सोच-समझकर बोलते हैं, इसलिए उनके द्वारा बोले गए मीठे और मधुर शब्दों का प्रभाव, सुनने वाले व्यक्ति के हृदय पर हमेशा-हमेशा के लिए अंकित हो जाता है। इसी वजह से कहा जाता है कि ‘शब्दों का चयन बड़ा महत्त्वपूर्ण हैक्योंकि शब्दों में कमाल की ऊर्जा होती है’। उस ऊर्जा का प्रयोग आपको कैसे करना है, किसी को प्रेरित करने के लिए या किसी को हतोत्साह करने के लिए, ये आपको निर्णय लेना है। इसीलिए, आप चाहें तो कम बोलें, परंतु हमेशा सधे हुए, संतुलित और अच्छे शब्दों का ही प्रयोग करें। अमरीका के प्रसिद्ध‘इन्वेस्टमेंट गुरु’ श्री वारेन बफेट ने एक बार कहा था कि ‘बोलना भी शेयर बाजार में निवेश (इन्वेस्टमेंट) करने जैसा है। जैसे आप सोच-समझ कर, संतुलित मात्रा में अपना पैसा चुनिंदा स्टॉक्स / शेयर्स में लगाते हैं, उसी प्रकार बोलते समय, आपको बहुत सोच-समझ कर, केवल चुनिंदा शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।’
शब्दों को ‘ब्रह्म स्वरूप’ माना जाता है।
आज हमारे पास ईश्वरीय वाणी, वेदों, उपनिषदों, महा ग्रंथों एवं महाकाव्यों के रूप में उपलब्ध है। ईश्वर द्वारा बोली गई बातें, आज भी हमारा मार्ग दर्शन करती हैं। हम आज भी, भाषा की मर्यादा को, अपने पुरातन ग्रंथों को पढ़कर सीख सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि शब्द, ब्रह्मांड में सदैव गूँजते रहते हैं। हम यह भी जानते हैं कि कुछ व्यक्तियों के स्वर्गवास हो जाने के बाद भी हम उनको याद रखते हैं, उसका एक कारण है कि उस व्यक्ति के मधुर बोल / शब्द, आज तक हमारे मन-मस्तिष्क और हमारे कानों में गूँजते रहे हैं। इसीलिए कबीर दास जी ने कहा था कि ‘मीठी वाणी बोलिए, जो मन का आपा खोए, औरों को भी शीतल करे, स्वयं भी शीतल होय’।मीठी-वाणी शहद के सामान होती है जो हमारे मन को शांति देती है, जबकि कटु-वचन तीर के समान कानों से प्रवेशकरके, हमारे मन-मस्तिष्क और शरीर को पीड़ा पहुँचाते हैं।
उत्साहित / हतोत्साह करने वाले शब्द
ऐसा कहा जाता है कि आपके द्वारा बोले गए शब्द, किसी बच्चे / छात्र को सफल भी बना सकते हैं और असफल भी। अगर आप उसे सफल बनाना चाहते हैं तो इसके लिए बस आपको सकारात्मक सोच और उत्साहित करने वाले शब्दों का प्रयोग करना होगा। और दूसरी ओर, आपके द्वारा बोले गए कटु और हतोत्साह करने वाले शब्द, उसी बालक को जीवन भर के लिए असफलता की गर्त में धकेल सकते हैं। और हाँ, आपको यह भी स्मरण रखना चाहिए, कि किसी बच्चे / छात्र के‘सफल हो जाने के बाद’, उसकी प्रशंसा में कहे गए हजारों शब्दों से अच्छा है कि उस बच्चे / छात्र के ‘संघर्ष के दिनों'में, आप उसको उत्साहित करने के लिए जो ‘कुछ शब्द’ बोलें, यही ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। विभिन्न शोध इस बात को सिद्ध (साबित) कर चुके हैं कि अपने जीवन में असफल हुए बच्चों की असफलता, उन बच्चों के मां-बाप द्वारा बोले गए कटु शब्द ही थे, जो उनके लिए श्राप बन गए। दूसरी ओर, अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने वाले बच्चों के माता-पिता द्वारा बोले गए उत्साहित करने वाले शब्द, उन बच्चों के लिए वरदान स्वरूप बन गए थे।
वाणी के कारण ही लड़ाई-झगड़े बढ़ रहे हैं
‘जेनरेशन गैप’भी एक कारण
हम सब सामाजिक प्राणी हैं, और भारतीय होने के नाते, संयुक्त परिवार में रहा करते हैं, और आप सब का अनुभव रहा होगा कि ‘पहली’ और ‘तीसरी’ पीढ़ी के बीच में जो गहरा प्रेम है, उसका कारण भी शायद ‘प्रिय-शब्द’ ही हैं और ‘पहली’ और ‘दूसरी’ पीढ़ी के बीच में जो दूरी है, उसका कारण भी ‘कटु-शब्द’ ही हैं। अगर आप, उस ‘पीढ़ी-का-अंतर’ (जेनरेशन गैप) जैसे विदेशी सोच-विचारों को दूर करना चाहते हैं तो अवश्य ही अपने माता-पिता से मर्यादित, करुणापूर्ण एवं प्रेमपूर्ण शब्दों में ही बातें करें। वैसे भी, यदि आप सफल होना चाहते हैं, तो आपको पुरानी और नई पीढ़ी के बीच, एक ‘सही-संतुलन’ बना कर ही रखना पड़ेगा और इस बहाने आप नई और पुरानी पीढ़ी के बीच इस दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे ‘अंतर’ को कम भी कर पाएँगे ।
‘कलयुग’ में वाणी का महत्त्व
आज ‘कलयुग’ के समय में, शब्दों (वाणी) का महत्व और अधिक बढ़ गया है। आज अगर हम 'कलयुग'को ‘घोर कलयुग’ होने से बचाना चाहते हैं, तो हमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण की बातें (वाणी) को फिर से सुनना और समझना होगा। उनके द्वारा कही गई बातें 'ब्रह्म वाक्य'हैं और उन बातों (वाणी) को हम तक पहुँचाने का एक ही मार्ग है - शब्द या वाणी। अंतरात्मा की आवाज को भी अमृतवाणी ही कहा जाता है, परंतु इस अमृतवाणी को सुनने के लिए हमें साधना करनी होगी, जो कि ‘योग’ द्वारा ही संभव है। वैसे भी, ‘योग साधना’ करने से हमारे सोने, जागने, उठने, बैठने, खाने, पीने और वाणी (बोलने) इत्यादि पर अनुशासन आ जाता है, इसलिए योग अपनाइये और अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना सीखिए।
सम्पर्कः१२०, साकेत, मेरठ